सुगंधित या गंधायमान?
शनिवार बंद… और रविवार भी… अब बताओ काहे के शुभ शनिवार …शुभ रविवार…?
घर में बंद रहो सो अलग …
अब घर का बड़ा बर्तन तो घर में मुश्किल से ही समा पायेगा ना…
वैसे ही जैसे दुकानदार जनरल स्टोर का बाहर लटका डिस्प्ले समेटने के बाद मेन काउंटर खींचकर अंदर किया करता है…
या फिर पहले काउंटर खींचकर अंदर कर लिया गया तो काउंटर के ऊपर से लेकर छत तक काउंटर पर बाहर डिस्प्ले मेंं लटकाया हुआ सामान लाद दिया जाता है…
काउंटर का रात में क्या काम?
सो जो कल भी काउंटर तक ग्राहक लायेगा वह डिस्प्ले सम्हालना जरूरी होता है और काउंटर तो मजबूत होता है इस का कुछ बिगड़ना तो है नहीं… सभी इसी पर तो लादते हैं …
दुकानदार यहाँ दुकान पर जो काउंटर के साथ करके घर पहुँचता है…. वही घर पर उसके साथ होता है… !
गल्ला गिनने गिनाने के बाद दुकानदार , रात वाला दुकान का मजबूत काउंटर बन जाता है … उसपर दिन भर से यहाँ वहाँ लटकने वाला… बाहर से मंगवाया गया … उड़कर आया हुआ… तमाम तरह के तनाव का सारा भार लादा जाना शुरु हो जाता है… उसकी नींद लगने तक वह लादा जाता रहता है… सुबह उठकर उसे साफ सूफ कर… फिर से कमाऊ काउंटर बनाकर दुकान दुकान (घर) से बाहर निकाल सुसज्जित कर / करा दिया जाता है…
अब दुकानदार की समझदारी तो इसी में है कि वह सोने से पहले लादी गई उलझनों का भार घर से बाहर निकलने से पहले उतार फेके…
मगर समझदार से समझदार दुकानदार भी पूरा भार उतार नहीं पाता… कहीं कुछ बारीक पाउडर जैसे सामानों से खयाल कुछ तेल जैसे चिपचिपे खयालों के दाग… और कुछ फिनायल जैसे बदबूदार खयालों की गंध और कुछ रास्ते में देकर वापस लिये जाने वाले कनफर्मेटरी खयालों .. कुछ जगह देखकर फेंके जा सकने वाले यानी यारों को सुनाने लायक विचारों के भार से लदकर ही निकलता है अक्सर दुकानदार…
कुछ खुशकिस्मतों की शर्ट पर खुशगवार सेंट्स का स्प्रे भी निकलते समय किया जाते पाया जाता है… (अगर साथी की मेहरबान हो!)…!
दुनियाँ के अमूमन दुकानदार तो गल्ला समेटकर लदे हुए ही घर पहुँचते और लदे हुए ही वापस दुकान पर आकर काम में लगते हैं…
आप ही सोचिये… भार से लदे हुए… भाँति भाँति की गंधों से गंधायमान.. दुकानदार की दुकान बेहतर कमाई करेगी…?
या खुशगवार बहारों सी भीनीभीनी खुशबू से नहाये दुकानदार की?
अच्छा या बुरा जैसा लगा बतायें … अच्छाई को प्रोत्साहन मिलेगा … बुराई दूर की जा सकेगी…